दंगों की आग झेल रहा सहारनपुर सतही तौर पर भले ही दलितों और ठाकुरो के बीच की जातीय हिंसा लगे पर इसकी तह पर बहुत बड़ी राजनीतिक साजिश की बू आती है। हज़ारों वर्षो के भारतीय इतिहास को अगर पलट कर देखे तो आप पाएंगे कि आज़ादी के 70 वर्षो बाद पहली बार ऐसा लग रहा था कि पूरा देश हिंदुत्व के साये में जातीय बेड़ियों को तोड़कर एकता के गठबंधन में बंधकर एकता के रास्ते पर अग्रसर होना चाहता है।

पर इससे पहले की इस गठबंधन को मजबूती मिलती हैदराबाद विश्वविद्यालय से रोहित वेमुला की आत्महत्या की खबर आती है और राष्ट्रीय पटल पर यह चर्चा का विषय बन जाता है कि देश में दलितों के साथ अन्याय हो रहा है और उन्हें इस प्रकार से शोषित किया जा रहा है कि उन्हें आत्महत्या पर विवश किया जा रहा है। इस पर जेएनयू से लेकर हैदराबाद विश्वविद्यालय तक वामपंथी छात्रसंगठनों, राजनीतिक पार्टियों और सामाजिक संस्थानों ने जमकर राजनीतिक रोटियां सेकी। राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, कन्हैया कुमार जैसे नेता धरने पर भी बैठे पर बाद में यह पता चला रोहित वेमुला दलित था ही नही और दलित के नाम पर ये नेता समाज में विद्वेष पैदा कर रहे थे।

दूसरी घटना सामने आई गुजरात से जहां कुछ असामाजिक तत्वों ने गौरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई की। राजनीतिक दलों ने इस घटना का आरोप आरएसएस पर लगाया जबकि आरएसएस देश में एकमात्र ऐसी संगठन है जो जातीय बंधन को तोड़ने के लिए पिछले 91 वर्षो से कार्य कर रही है। आरएसएस ने न सिर्फ इस आरोप का खंडन की बल्कि उन असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग की। आरएसएस पर आरोप एक खास मकसद से योजना के तहत लगाया गया ताकि आरएसएस को अगड़ी जातियों का हितैषी बताकर दलितों और अन्य जातियों में जाति की खाई को और गहरा किया जा सके।

सहारनपुर दंगा भी इसी श्रेणी में जातीय खाई को बढ़ाने वाली एक राजनीतिक साजिश से ज्यादा कुछ और प्रतीत नही होती है। भीम सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर अपनी राजनीतिक महत्वाकांशाओं को प्राप्त करने और राष्ट्रीय पटल पर आने के लिए दलित समुदाय को भड़काने का काम कर रहा है। यह बात किसी से छुपी नही है कि भीम सेना या फिर इस तरह के और अन्य दलित संगठन उत्तरप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के लिए कार्य करती है। पिछले चुनावों में बहुजन समाज पार्टी की हार की एक मुख्य वजह दलितों का बीजेपी की तरफ झुकाव था। चूंकि अगले महीने पूरे उत्तरप्रदेश में नगर निकायों के चुनाव होने वाले है, इसलिए दलितों के वोटबैंक को अपने तरफ झुकाने और अपनी राजनीतिक जमीन को फिर से तराशने के लिए दलितों और राजपूतो में दंगे करवाये जा रहे है और इसका मुख्य चेहरा बना है चंद्रशेखर। चंद्रशेखर के नेतृत्व में 180 दलितों ने अब तक बौद्ध धर्म को अपनाया है और अन्य लोगो ने धमकी दी है कि वो इस्लाम कबूल लेंगे।

प्रदेश की योगी सरकार को जल्द से जल्द इस स्तिथि को सम्हालना होगा जिससे कि हिंदुओं में पड़ने वाली आपसी फूट को रोका जा सके।